फूलो से सजी सेज का श्रुगार
जैसे जता रहा तुरंत ही अधिकार
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जानने का भी नहीं करते इंतज़ार
और जैसे अपनी हावसी करते दीदार
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आम तौर पे कराते चुप उसकी पुकार
और कामना के लिए लगवाते बुहार
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लगे अच्छा करते प्यार कमरेकी चार दिवार
सरेआम थोड़ी भी ऊँची आवाज़ पे तकरार!