मदवा पीले पागल जोबन बीत्यो जात।
बिनु मद जगत सार कछु नाहीं मान हमारी बात॥
पी प्याला छक-छक आनंद से “नितहि सांझ और प्रात।
झूमत चल डगमगी चाल से मारि लाज को लात॥
हाथी मच्छड़, सूरज जुगूनू जाके पिए लखात।
ऐसी सिद्धि छोड़ि मन मूरख काहे ठोकर खात॥”
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- Umakant