मैं और मेरे अह्सास
बार बार प्यार का यकीन दिलाए क्यूँ?
रोशन महफिल में चरागों को जगाए क्यूँ?
मोहब्बत इक नज़र में पहचानी जाती हैं l
दिल की लगी को इशारों में जताए क्यूँ?
ये तो सरासर तौहीन ओ गुस्ताखी होगी l
नजरों से पिलाते हैं तो जाम पिलाए क्यूँ?
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह