मैं और मेरे अह्सास
गुज़रे हुए वक्त की तसवीरें दिखाना चाहते हैं l
जीने के वास्ते फ़िर वहीं ज़माना चाहते हैं ll
वक्त एक लम्हाभर भी कहीं ठहरता ही नहीं l
बीते लम्हों से रिश्तों को निभाना चाहते हैं ll
ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त नसीब होनी चाहिए l
याद करना, औरों को याद आना चाहते हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह