लोगो की परवाह नहीं मुझे
बस एक चीज,जो मुझे तकलीफ देती हैँ
रिस्ता तो मैंने उनसे इतनी सिद्दत से निभाया
फिर क्यों बदले मे मुझे सिर्फ खामोशियाँ, इंतज़ार और आंशू ही मिले
टूट कर बिखेर दिया उन्होंने
और कहते हैँ समझदार हैँ खुद को समझा लेगी
हम्म्म.... सच कहाँ अब आदत होगयी हैँ समझौते करने की, चाहे बात हो या रिस्ता
- SARWAT FATMI