में लफ़्ज़ बहुत ही कम लिखता हूं.
पर पूरी ज़िंदगी के ग़म लिखता हूं
मेरी शायरी पड़ने वाले भी तड़प उठे.
में हंस कर ऐसे ज़ख़म लिखता हूं.
परवाह नहीं मुझे किसी के आंसुओं की.
जब भी लिखता हूं बे रहम लिखता हूं.
तुम्हारी बद दुआ क्या मुझे मारेगी.
में तोड़ी हुई हज़ार कसम लिखता हूं.