विषय - परछाईं
नई नवेली दुल्हन बनकर,
साथ तुम्हारे घर आंगन आई।
सात जन्मों के इस बंधन में,
बनकर रहूं तुम्हारी परछाईं।।
न छूटे कभी साथ तुम्हारा,
जीवन के इस लंबे सफर में।
हाथ में हाथ तुम्हारा रहा तो,
कर लूंगी कहीं भी बसर में।।
कभी कभी तुम कुछ न बोलो,
तुम्हारे अंतर्मन को समझ पाऊं।
मौन की भाषा पढ़ सकूं मैं,
ऐसी अर्धांगनी , मैं बन जाऊं।।
साया बनकर साथ चलूं मैं,
हर कदम से निशां मिलाना है।
मीलों की दूरी साथ तय करके,
परछाईं बन साथ निभाना है।।
तुम दीपक मैं बाती बनकर,
प्रेम का प्रकाश फैलाएंगे।
रोशन कर इस जिंदगी को,
जीवन से अंधकार मिटाएंगे।।
किरन झा (मिश्री)
ग्वालियर मध्य प्रदेश
- kiranvinod Jha