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राम नाम के सहारे से ही, हो जाती है नैया पार। द्वेष मन से मिट जाते, खुल जाते मुक्ति के द्वार।। मिश्री - kiranvinod Jha
मनमीत के बिना,सब कुछ है बेकार। खुशी मिले या गम,वो सब दे स्वीकार।। मिश्री - kiranvinod Jha
भ्रम ही है इंसान की कमी, रह रह आती , आंखों में नमी।। सर्वश्रेष्ठ दिखाने के चक्कर में, कब छोड़ देता,जमीर की जमी।। मिश्री - kiranvinod Jha
दूसरों के सहारे मत रहिए, कब दे जाएं ,वो लोग धोखा। अपने आपको मजबूत रखें, नहीं दे उन्हें,कोई भी मौका।। सुप्रभात मिश्री - kiranvinod Jha
इंतजार में बैठे थे,शाम भी ढलकर,हो गई रात। कुछ अधूरा लग रहा,उनसे नहीं हुई आज बात।। मिश्री - kiranvinod Jha
घात लगाकर बैठे हैं, कुछ अपने ही लोग। एक चूक जो तुमने की, विष वाणी का मिलेगा भोग।। मिश्री - kiranvinod Jha
इच्छाओं का क्या है ,ये चलती जीवन पर्यंत। विराम तभी लगता,जब होता सांसों का अंत।। सुप्रभात मिश्री - kiranvinod Jha
🙏🏻 🙏🏻 है किरदार बहुत खूब निराला, सबके रंग में ही रंग जाते। बच्चे , बुजुर्ग या युवा हो, सबके दिल में जगह बनाते।। कब किस बात को कहना है, ये बखूबी से, वही बताते। हंसी,मजाक या हो कटाक्ष, अपनी लेखनी से दर्शाते।। न किसी से बैर,न ही घनिष्ठता, सभी को समान भाव दिखाते। एकल स्वभाव के कारण ही, अपने आपको नहीं लजाते।। समय जब भी मिलता है उन्हे, अपनत्व भाव से चले आते। अपनी मनमोहक शायरियों से, इस समूह में चार चांद सजाते।। किरन झा (मिश्री) - kiranvinod Jha
शब्द वाण किसी से कम नहीं, दिल को करते छलनी छलनी। आजीवन सब याद रहता, देह त्याग पर ही होती भरनी।। मिश्री - kiranvinod Jha
औरों को वक्त देने की खातिर, अपनों का वक्त,वो भूल जाते। इंतजार की उसे , पीड़ा देकर, घड़ी घड़ी उसे,क्यों आजमाते।। मिश्री - kiranvinod Jha
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