*दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*स्वाद, विषाद, महिमा, विमल, चरित्र*
*स्वाद* नशा का मत चढ़े, हो जाती मति भ्रष्ट।
सत्कर्मों के स्वाद से, पाप कीजिए नष्ट।।
मानव रूपी भेड़िया, बन बैठा है संत।
छाया हुआ *विषाद* है, हो कैसे अब अंत।।
*महिमा* अपरंपार है, सावन-भादों मास।
गौरी शिव की वंदना, विघ्नविनाशक पास।।
विनय *विमल* संकट हरण, गणपति शिव के पुत्र।
शुभ मंगल की कामना, रक्षा करें सर्वत्र ।।
वातावरण बनाइए, निखरे नेक *चरित्र*।
सतयुग त्रेता लौटता, कलयुग बने पवित्र।।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*