मैं और मेरे अह्सास
दिल पर मत लेना कुछ भी कहने की आदत हैं l
ये जो ग़म में डूबे हुए हैं इश्क़ की इनायत हैं ll
ज़माने की बातों में आकर दूर दूर रहते हैं और l
वादा करके मुकर जाना उनसे ये शिकायत हैं ll
दिले कातिल को हैरान कर के छोड़ दिया तो l
मना करने के बाद निगाहों से हुई बगावत हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह