मैं और मेरे अह्सास

उजड़े हुए शहरो में आशियाना न ढूंढ़ा कर l
इन्सानों के चहरों को नजदीक से पढ़ा कर ll

जो होगा देखा जायेगा कल की चिता छोड़कर l
जीए जा मस्ती में फ़िक्र को हवा में उड़ा कर ll

मुक़द्दर में सुहानी सुबह है यही सोचकर आज l
चरागों को बुझाकर चैन की नींद लिया कर ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111948924
New bites

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