मैं और मेरे अह्सास
दरियादिली सागर की देखो नदी को ख़ुद में समा लेता हैं ll
जो भी मिला जिस तरह भी मिला भीतर ही बसा लेता हैं ll
न फैलने का डर न छलकने का खौफ़ मुस्कराते हुए बस वो l
शिद्दत से जुस्तजू और जुनून के साथ बाहों से लगा लेता हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह