क्या मैं गलत थी....??
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आख़िरी तोहफ़ा समझकर बहुत खुश हुई थी मैं
जाने क्यों दिल में एक दर्द सा दबा था?
थोड़ी घबराहट बाकी आंखों में नमी पसरा था
क्या मैं गलत थी ?
खामोश होठों ने भी चुप्पी आहिस्ता से तोड़ा था......
जब बाकी कुछ नहीं रहा तो
खुद के सवालों का जवाब कहां से लाऊं ?
बन जाऊं मैं खुद तन्हाई की चादर
आंखों में आई नमी को कैसे छुपाऊं
क्या मैं गलत थी ?
खामोश होठों ने भी चुप्पी आहिस्ता से तोड़ा था......
चुप मैं रह भी लूं पर आंसुओं के दाग को कैसे मिटाऊं
मैं क्यों चुप्पी तोड़ने लगी खाली किताब बनकर
जिंदगी के पन्नों पर अधूरा किस्सा सजा जरूर था
मतलबी दुनियां में किसी को अपना मान ली थी
क्या मैं गलत थी ?
खामोश होठों ने भी चुप्पी आहिस्ता से तोड़ा था......
Manshi K