मैं और मेरे अह्सास

चित्तचोर चित्त चुरा के छुप गया हैं l
चैन के साथ सुकून भी लुट गया हैं ll

जब से दिल्लगी दिल की लगी बनी है l
तब से दुनिया से राबता छुट गया हैं ll

गली के चक्कर काटने शुरू हुए है तो l
लाज शर्म से नाता तुरन्त टुट गया हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111948396
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now