मैं और मेरे अह्सास

ख्वाब मुकम्मल करने की सालों पुरानी हसरत हैं l
सच कहता हूँ ये ख्वाब ही बची कूची दौलत हैं ll

तिरे लिए तिरे दम से तो जिन्दा हूं आज तक तो l
और क्या सोचूँ तिरे ख्यालों से कहां फुर्सत हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111948098
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