वो शामें वो बातें, अब तक याद हैं मुझे,
तेरे बिना ये सन्नाटे, हज़ारों सवाल का ख्वाब हैं मुझे
तेरी हँसी की गूंज, अब भी खामोशी में खोई होगी क्या?
सोचती हूं मैं भी अकेली रातों में
तनहाई तुम्हारी भी रोती होगी क्या ?
तेरे बिना जिन्दगी, जैसे किसी परछाई में सो गई
हर एक याद, अब दिल की धड़कन में सिमट यूं गई
तेरे बिना ये राहें, बस दूरियाँ अजनबी बनकर मिलता है
तेरे बिना ये दिल, बस खाली सा किताब लगता है
तू ही तो था, जो मेरे हर दर्द को समझता था
तेरे बिना जीना, जैसे जीते जी ही मरता है
लौट आओ कही से आंखें इंतेजार में अब भी रोता है
तस्वीर वो तुम्हारी अलमीरा में आज भी
खामोश दबा रहता है.......

-Manshi K

Hindi Poem by Manshi K : 111943647
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