मैं और मेरे अह्सास
सुख दुख में जीना सिखाती है ज़िन्दगी l
रोज नया आयाम दिखाती है ज़िन्दगी ll
सुनो ख्वाइशे औ अरमान की चाहत में l
दर्द से भरा शहद पिलाती है जिन्दगी ll
खुद को ही चाहो चाहनेवालो की तरह l
ज़िन्दगी से रूबरू मिलाती है ज़िन्दगी ll
मुक़द्दर से मिले हुए रिश्तों को बखूबी से l
साथ मिलझुल कर बिताती है ज़िन्दगी ll
भीड़ छोड़कर अकेले में मेला लगता है l
साँसों से रिश्ता निभाती है ज़िन्दगी ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह