मैं और मेरे अह्सास
रोज एक नया दर्द सहकर हँसती हूँ ये करिश्मा ही तो हैं ll
इसी तरह नया इतिहास रचती हूँ ये करिश्मा ही तो हैं ll
निगाहों से पिलाते रहते हैं इश्क़ का जाम लगातर तो l
महफिल में बिना पिए छलकती हूँ ये करिश्मा ही तो हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह