नफरत से हम जीत यूं जाते हैं
गुजर कर उन गलियों से तुम्हे यादों में
थोड़ा यूं उतार लेते हैं
कभी तो बादल बिना सावन के भी बरस जाते यहां
थोड़ा खुद को और कुछ उनकी यादों को
बूंदों के बीच छोड़ जाते,,,,,,,,
पिघल कर बादल हमें यूं परेशान थोड़ा कर जाते
आते जाते उन गलियों से गालिब
उल्फत ए दास्तां बयां हमारी भी यूं कर जाते
माना कहानी अधूरी थी हमारी
पर अधूरा किस्सा ही ,बूंदों के बीच छोड़ जाते,,,,,,,
-Manshi K