मैं और मेरे अह्सास
अजनबी रास्तों पर निकल पड़े हैं दो अजनबी l
मुकम्मल मंजिल को तरस रहे हैं दो अजनबी ll
इतनी दूर जा चुके के वापसी भी नामुमकिन l
अपनों से मुलाकात तड़प रहे हैं दो अजनबी ll
पथरीले टेड़े मेढे अंधेरे रास्तों की राहगुज़र में l
आहिस्ता आहिस्ता सॅभल रहे हैं दो अजनबी ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह