मैं और मेरे अह्सास
महफ़िल में मौन के इशारों को समझो तो जरा l
निगाहों की सुराही से जाम पी बहको तो जरा ll
सज सँवर कर आई है आसमान से यहाँ पर l
हुस्न की परियों के सिंगार से मचलो तो जरा ll
उम्रभर का लाइलाज रोग पालने जा रहे हो तो l
खेल रहे हैं या सच में मुहब्बत परखो तो जरा ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह