हकीकत हूं मैं ! क्यों फिर दुनियां आजमाती है मुझे ?
मां मैं भी तेरी परछाई हूं
क्यों फिर दुनियां समझाती है मुझे ?
अब और सहन नहीं होता मुझसे
इनके लगाए झूठे इलज़ाम
छुप जाने दो मुझे तेरे आंचल में आज मां....
कुछ दिन ऐसे ही ढल जाने देना तुम सुबहों शाम
कुछ कह कर टाल देना मैं अब तो हो चुकी हूं बदनाम
फ़र्क पड़ता नहीं किसी को चंद बूंद
मेरे आंखों से असकों का बह जाना
मरते दम तक होगा न कोई नाम
हर तरफ मचा अफरा - तफरी है
छुप जाने दो मुझे तेरे आंचल में आज मां....
ख़ामोश लबों से मै कुछ बोल नहीं सकती
अब तुझे ही करना होगा कुछ काम
बेटियां तेरी हूं मैं तेरे होठों की मुस्कान
अब बहुत हुआ सबका यूं उठाना मुझपर सवाल
मालूम नहीं सवालों का क्या निकलेगा अंजाम ?
छुप जाने दो मुझे तेरे आंचल में आज मां....
-Manshi K