मैं और मेरे अह्सास
आषाढ़ में आंखों से सावन भादों बरस रहे हैं l
भीगने भिगोने के लिए जज़्बात मचल रहे हैं ll
बागो में कोयल पपीहे मीठे मधुर गीत गाते l
बहका हृदय पीयू मिलन को तड़प रहे हैं ll
आकाश से मुस्काती बूंदे धरा से मिलने आई l
क़ायनात के छोटे बड़े जीव इसे पनप रहे हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह