मैं और मेरे अह्सास
सोचा ना था अपने यूँ बदल जाएंगे ll
खून के रिश्ते हाथों से फिसल जाएंगे ll
साथ जीने मरने को आये थे क्या हुआ ?
कि जल्द ही जिन्दगी से निकल जाएंगे ll
एक दौर एसा आएगा, ऐसे भी जीना होगा l
दर्द छुपाकर यूँही दिन रात ढल जाएंगे ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह