मैं और मेरे अह्सास
सीने में मनचाहा मुरव्वत दर्द सुलगता रहा l
जड़ों तक ज़ख्म लगे तो ताउम्र तड़पता रहा ll
रिश्तो की दुहाई ना देना जज़्बात मर गये हैं l
बेवफाओं से दिली ताल्लुक़ से मचलता रहा ll
जिंदा रहने के लिए गलतफहमी पाल रखी थी l
दिलमें उठते यादों के बवंडर से छलकता रहा ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह