मैं और मेरे अह्सास
मोबाईल की लत बुरी बला हैं l
इन्सां बेकार सा हो चला हैं ll
इस की आभासी कायनात बड़ी l
फेंक अकाउंट बना के छला हैं ll
ग़र सही तरीके से इस्तेमाल हो l
कार्यक्षमता बढ़ाने की कला हैं ll
खेल ने का टाइम चुरा लिया है कि l
आज बचपन साथ उसके पला हैं ll
अब हमारे दिन रात वो चलाता है l
रिश्तों का नेटवर्क ढीला ढला हैं ll
१९-६-२०२४
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह