मैं और मेरे अह्सास
सोचा ना था ज़िंदगी ये दिन भी दिखाएंगी l
महबूब किसी और का नाम भी लिखाएंगी ll
प्यार में जीने मरने की कसमें खाने वाली l
जुदाई के दिन रात हसी खुशी से बिताएंगी ll
साथ साथ बिताएं हुए लम्हों को भुलाकर l
आज किसी और से साथ शादी रचाएंगी ll
नई ज़िंदगी नया यार नया रिश्ता मिला तो l
घर आँगन को महकते फ़ूलों से सजाएंगी ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह