महकती राहों में बसा हूँ,
सफ़र का मुसाफ़िर नहीं हूँ,
अंधेरे की रातों में गुज़रा हूँ,
रोशनी ए सितमगार नहीं हूँ।
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वक्त ए दुनिया में बेजा देखा हूॅं।,
लेकिन वाबस्त ए सौदागार नहीं हूँ,
तजावीज ए मस्ती, दुनिया में रहा हूँ,
ज़िंदगी में कोई, बादशाह नहीं हूँ।
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ग़म की बरसात में नोजा ए गुसल हूँ,
दर्द याद शीशा, बहदवास नहीं हूँ,
दुआओं की महफ़िलों में शामिल हूँ,
यकिकी दुआ का सालिब नहीं हूँ।
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किताबों की दुनिया में ख़ुद भी पढ़ा हूँ,
अबतो इस इलम का तालिब नहीं हूँ,
जहां के सवालों के जवाब भी दिए हैं,
वलबला मारूसियत ए साफि नहीं हूँ।
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बेकस ज़िंदगी के सफ़र में गुज़रा हूँ,
मंज़िल या भटका, मुसाफ़िर नहीं हूँ,
बची रोज ये उम्मीदों के गले लगा हूँ,
स्याह अधंरी रात, ख्वाबों ए सालेह नहीं हूँ।
कारोबार की दुनिया में हूँ,
मुनाफ़े का शिकार नहीं हूँ,
सियासत की राहों में गुज़रा हूँ,
इक्तेदार ए हुकमरान नहीं हूँ।
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दौलत की गफलतों में गुज़रा हूँ,
मिले सुकू बस कातिल नहीं हूँ,
मुसकदा ए राह में चला हूँ,
यारब मै वफ़ादार नहीं हूँ।
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मीत नासही, यादों की दुनिया में हूँ,
वफा भी कहे कि, नवाएं कदीम नहीं हूँ,
तारीख के सफ़हों या बाग़ में गुज़रा हूँ,
फख्त ए कसूरवार हूॅं, नामदार नहीं हूँ।
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वक्त के हुनर के फ़नों में हूँ,
साजदार हूॅं फ़नकार नहीं हूँ,
उचीदरो ए मिनार की दुनिया में हूँ,
नेकीपर कायम हूॅं रहबर नहीं हूँ।
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सैंकड़ों रूपक सजा दिए, इस दूनियॉं में,
लिखारी हूॅं यही कि, एक फ़र्द नहीं हूँ,
बाख़ुदा की आरज़ू की दुनिया से हूँ,
मन्सूख ए अमल पर, मुतालिक नहीं हूँ।
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इंसाफ़ के मैदान में हूँ, क़ाज़ी नहीं हूँ,
अक़्ल ओ फ़हम में हूॅं, निगाह नहीं हूँ।
हर जंग की सरहदों में हूँ,
फ़तह ए बादशाह नहीं हूँ,
आज़ादी के आलम में हूँ,
जहॉंपरदा, हमराह नहीं हूँ।
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बगैरत प्यार की दुनिया में हूँ,
दुकाना बता, मोहब्बत ए यार नहीं हूँ,
रंज ओ ग़म के दरिया में गुज़रा हूँ,
कमतर ही सही, हमराह नहीं हूँ।
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युही ख्वाबों की मानिंद गुज़रता हूँ,
हक़ीक़त ए इन्तहा, दीवाना नहीं हूँ।
समुन्दर बयार, तुफाना इनकानात हॅू
तमन्नाओं के सागर, लहर राजदार हूॅ।
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@ जुगल किशोर शर्मा