दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*चिरैया,जीव,धरती,दरार,ग्रीष्म*
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उड़ी *चिरैया* प्राण की, तन है पड़ा निढाल।
रिश्ते-नाते रो रहे, आश्रित हैं बेहाल।।
*जीव* धरा पर अवतरित, काम करें प्रत्येक ।
देख भाल करती सदा, धरती माता नेक।।
गरमी से है तप रहा, *धरती* का हर छोर।
आशा से है देखती, बादल छाएँ घोर।।
दिल में उठी *दरार* को, भरना मुश्किल काम।
ज्ञानी जन ही भर सकें, उनको सदा प्रणाम।।
*ग्रीष्म* तपिश से झर रहे, वृक्षों के हर पात।
नव-पल्लव का आगमन, देता शुभ्र-प्रभात।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
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