मैं और मेरे अह्सास
आम से खास होने में सालों लग जाते हैं l
खास से आम होने में एक पल लगता है ll
जो चीज़ दिखती है वैसी होती नहीं है l
जो है उससे वो उल्टा ही दिखता है ll
मिलते रहो प्यार और मुहब्बत से तो l
सिर पर ताज़ बनकर वो सजता है ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह