छठ पूजा ।
खरना पर्व के ठीक दूसरे दिन छठ व्रती
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। जिनके घर में छठ पर्व मनाया जाता है
उनके यहां होली के बाद से ही छठ व्रत की
तैयारी शुरू करते हैं। जैसे सबसे पहले सूर्य भगवान जी से प्रार्थना करते हैं उसके बाद
पूजा के बर्तन की साफ सफाई करने में व्यस्त हो जाते हैं छठ पूजा करने वाले परिवार तथा अन्य श्रद्धालु गण। छठ पूजा करने के लिए एक कमरा अलग से साफ
सफाई कर दिया जाता है।
सबसे पहली बात तो यह है कि जिनकी जितनी सामर्थ्य हो
उस हिसाब से घर द्वार की रंगाई-पुताई करते हैं लेकिन करते सब कोई हैं। जिन्हें
आता है रंग करने वे लोग घर की पूताई मां स्वयं कर लेते हैं। ऐसा करने से फायदा यह होगा कि रंगाई पुताई के बाद दीवार को
उतना साफ करने की आवश्यकता नहीं होती है। अतः यह श्रेष्ठ होता है। इससे जीवाणुओं का खात्मा हो जाता है और वातावरण में शुद्धता आती है।रोग व्याधियों
से रक्षा होती है। इसलिए साफ सफाई का
जीवन में महत्वपूर्ण योगदान है।
खरना व्रत के बाद छठ पर्व के अस्ताचलगामी सूर्य भगवान जी को अर्घ्य अर्पित करते हैं। पूजा के बर्तन की साफ-सफाई तों हो गई है। अब फर्श वगैरह
धोएं हुए तो हैं परन्तु फिर पूजा होती है तो
फर्श को धो दिया जाता है। तत्पश्चात् सूखें
तौलिए से पोंछ देते हैं। इस कमरे में लोगों
का आना जाना बन्द कर दिया जाता है।
क्योंकि अब डाला,दौरा तथा सूप वगैरह
का इंतजाम किया जाता है। यदि पूजा किए गए डाला और दौरा को कपड़े से बांध कर
अच्छे से रख दिया गया है तो वो व्यवहार
किया जाता है। बस सिर्फ अच्छे पानी से
धोकर उड़ा देते हैं। नया सूप जितना जरुरी होता है सब आज ही लेकर आते हैं। चूल्हा
तो बना हुआ है ही, बस इसे मिट्टी और गोबर से लीप दिया जाता है। अब चूंकि अस्ताचलगामी सूर्य भगवान जी की पूजा करनी है तो प्रसाद की तैयारी करीब दिन के
मध्यान्ह तक हो जाता है। आम की लकड़ी
जलावन के लिए व्यवहार किया जाता है।
घर के मुख्य सदस्य तथा अन्य परिवार के
सदस्य मिलकर बाजार जाते हैं और फल फूल एवं मेवा मिष्टान्न तथा अन्य जरुरत की
चीजें ले लेते हैं। फूल माला ,तुलसी दल,भखरा सिंदूर, त्रिवेणी जल,
गंगाजल , अक्षत , पीले फूल , अलती , घी,
कपूर , धूप ,रूई बत्ती , सात तरह के फल,
लेकिन इसमें अपवाद हैं जिनकी जितनी क्षमता है वो उतने ही लेते हैं।
फल - शीश वाले नारियल पांच, केला,
संतरा , अमरुद, गाजर , शकरकंद , शरीफा, अनार ,बेर,टाभा नींबू , कमरंगा,आंवला,
अदरक, मूली , अंगूर , नाशपाती ,आम,
बताशा , कसार , ठेकुआ गन्ना आदि।
सूप ,टोकरी तथा दौरा नया खरीदने की
की हर साल जरूरत होती है। तो यह सब
पहले ही खरीद लिए जाते हैं। अब चूंकि
समय कम है तो यह सब धोकर सूखा लिए
जाते हैं। पूजा करने के लिए कपड़े , भगवान जी के कार्य के लिए कपड़े ,आसन, सूप दौरा बांधने के लिए कपड़े, रुई बत्ती, दे
मिट्टी के दीपक , पीतल के दीपक , पूजा के लिए दूध,अगरबत्ती आदि। इन सब चीजों का इंतजाम
नहाय खाय से पहले साफ करके पूजा के
कमरे में रख दिया जाता है।सुबह के समय
से छठ व्रती संग महिलाएं प्रसाद बनाने की। तैयारी में लग गई है। यह महाप्रसाद आम
की लकड़ी पर ही बनते हैं। जितने सूप होते
हैं सब पर चढ़ाने के लिए ठेकुआ बनाते हैं
साथ ही अन्य कोई यदि छठ पूजा पर प्रसाद
चढ़ाने के लिए पैसे लगाते हैं उनके प्रसाद
बनाए जाते हैं तथा उनके सूप वगैरह तुरंत धोकर रखे जाते हैं। जैसे ही महाप्रसाद बन
जाते हैं तो सूप सजाने की तैयारी शुरू किया जाता है। सूप में पूजा के लिए जिन जिन चीजों की जरुरत होती है सभी सूप में चढ़ाते हैं।
दौरा और टोकरी में फल मिष्टान्न सजाकर रखते हैं। पूजा की थाली तैयार करते हैं।
छठ व्रती के वस्त्र एवं सामान वगैरह एक
अलग साफ थैली में रखते हैं।जिन महिलाओं ने छठ व्रती की पूजा में सहायता करनी होगी , वे अपना सामान अलग थैली
में रखते हैं। गन्ने साबुत रखते हैं तथा काट काट कर रखते हैं सूप और परात में प्रसाद
के साथ। दीपक वगैरह घी रुई बत्ती डालकर एक सभी सूपों के लिए एक थाली में रखते
हैं। जब छठ पूजा की सभी तैयारियां पूरी हो
चुकी होती है तो दीपक सूप में रखते हैं प्रसाद के साथ चादर से सूप दौरा बांधने के बाद। हर सूप में दीपक लगाते हैं।
हां तो
अब समय हो गया है और सबसे पहले प्रसाद का डाला दौरा तथा सूप सामग्री लेकर छठ व्रती के परिवार के सदस्य तथा
अन्य रिश्तेदार, पड़ोसी निकलते हैं। छठ व्रती हाथ में लोटा लिए रहती हैं जिसमें
दूध रहते हैं।घर के अन्य सदस्यों के पास
भी बड़े बर्तन में दूध रहते हैं जिनसे सूर्य भगवान जी कोई अर्घ्य अर्पित करते हैं।
सबसे पहले डाला दौरा तथा सूप सामग्री
लेकर घर के सदस्य छठ पूजा के लिए निकलते हैं। द्वार पर छठ महारानी के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करके फिर गीत गाते हुए छठ व्रती के साथ महिलाएं तथा अन्य
श्रद्धालु गण निकलते हैं। छठ गीत गाते हुए
छठ पूजा घाट कब पहुंच जाते हैं पता नहीं जलमग्न होकर चलता है।
हां तो अब छठ पूजा के घाट पर
आ गये हैं पूजा करने वाले भक्त गण, श्रद्धा गण डाला, दौरा और सूप सामग्री लेकर।
यह सब पूजा के सामान को उसी स्थान पर रखा जाता है जहां पर पूजा करने के स्थान
सुनिश्चित किए गए हैं। उसके बाद डाला और दौरा तथा टोकरी खोलकर छठ घाट पर
सजा कर रक्खा जाता है। छठ व्रती भगवान
सूर्य को प्रणाम करके जल में उतरती हैं
स्नान ध्यान करने के लिए।
जल में डुबकी लगाती हैं , इस तरह कितनी बार करती हैं
और प्रवाहित जल में स्नान करती हैं। तत्पश्चात् जल में निमग्न होकर हाथ जोड़ कर भगवान सूर्य के ध्यान में लग जाती हैं।
सबों के लिए प्रार्थना करती हैं। करीब एक
दो घंटे तक पानी में निमग्न होकर पूजा में
लीन हो जाती हैं।
अब छठ व्रती स्नान के बाद घाट के
किनारे पर आती हैं। नये वस्त्र धारण करने के बाद महिलाएं व्रती को सिंदूर लगाती है,
उसके बाद भगवान सूर्य जी का ध्यान करके
फिर घाट के किनारे पर जल में निमग्न होकर सूप में प्रसाद लेकर परिक्रमा करते हैं। छठ व्रती सूप में फल प्रसाद लेकर परिक्रमा
करती हैं इस दौरान भक्त गण संगत गण तथा श्रद्धालु गण परिवार के सभी सदस्य
मिलकर सूप में अर्घ्य देते हैं। इस तरह जितने सूप होते हैं सब में फल प्रसाद लेकर
छठ व्रती परिक्रमा करते हैं। उसके बाद छठ
घाट पर सूप प्रसाद के पास बैठकर भगवान्
सूर्य को प्रणाम करते हैं। थोड़ी देर इसी तरह
भगवान भास्कर जी का ध्यान सभी लोग
करते हैं।
अब सूर्य अस्त होने चला है तो दौरा डाला और सूप प्रसाद के साथ चादर से बांधते हैं।
प्रत्येक सूप में दीपक जलाए जाते हैं। जिन्होंने प्रसाद डाला और दौरा तथा सूप में प्रसाद लेकर आए हैं, वही फिर प्रसाद लेकर
भगवान सूर्य को प्रणाम करते हैं और वापिस
घर की ओर प्रस्थान करते हैं। छठ मैया की
जय कहते हैं। जयकारे लगाते हैं।
अब छठ व्रती के साथ साथ आए हुए
सभी महिलाएं, लड़कियां तथा बच्चे, पुरुष
घर वापस लौटने के लिए चल पड़ते हैं।
इस तरह छठ व्रत का पहला अर्घ्य
सम्पन्न हुआ।
छठ पर्व पर शुभकामनाएं एवं बधाइयां सबको।
अनिता आकिंचन्य दासी भगवान सूर्य
की कृपा से लिखने का प्रयास की है और
आने वाले साल में पुनः लिखने आएंगी।
जो लिखे, पढ़े तथा हूं भी भरे उन्हें समान है फल की प्राप्ति हो।
जाने अंजाने लिखने में अगर कोई त्रुटि
हुई है तो क्षमा प्रार्थी हूं।
क्षमा करो हे सूर्य भगवान जी ।
कोटि-कोटि प्रणाम।
शरणागति करो भगवान।
जय जय हे सूर्य भगवान।
-Anita Sinha