Hindi Quote in Story by Anita Sinha

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उसका जवाब हां था।

सावित्री को नरेश से प्रेम तो था परंतु
वह अभी प्रेम को उजागर करना नहीं चाहती
थी। नरेश सावित्री का पड़ोसी था। इस नाते
घर में आना हुआ होता था। नरेश के माता-पिता गांव से शहर में शिफ्ट कर गये
थे। नरेश की उच्चतर शिक्षा के लिए उसके
पिता ने शहर में रहने का निर्णय लिया।

नरेश के पिता का व्यवसाय था। तो उन्होंने सोचा कि शहर में रहकर व्यवसाय
कर लूंगा साथ ही साथ पार्ट टाइम जॉब यदि
मिल जाए तो अच्छा रहेगा। गांव में व्यवसाय
अच्छा चल रहा था परन्तु शहर में तुरंत आकर व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने में
समय लग सकता है। यही सोचकर उन्होंने
घर से पार्ट टाइम जॉब आनलाईन ढूंढ ली थी। हालांकि नरेश की मां को अपने पति
के लिए चिंता हो रही थी। सबसे पहली बात
तो यह है कि देर रात व्यवसाय करके लौटेंगे
नरेश के पिता तो आनलाईन जाब कब करेंगें और यदि करेंगे भी तो सोने में अत्यधिक देर
हो जाएगी। परन्तु नरेश की मां जानती थी
कि ये मेरी एक नहीं सुनेंगे। करेंगे वही जो
इनके मन भाएगा। खैर, ये तो हुई मेरे मन
की बात। उनकी पत्नी होने के नाते हमें तो
उनका मनोबल बढ़ाना होगा।

सावित्री के पिता जी रेल कर्मचारी थे।
मां महिला समिति में सिलाई बुनाई का काम किया करती थी। इससे घर का खर्च
अच्छे से चलता था। सावित्री कालेज की
स्टूडेंट थी। नरेश ने अभी अभी कालेज में
एडमिशन लिया है। इस नाते शायद सावित्री
नरेश से बड़ी हो सकती है। लेकिन देखने में नहीं आता था। दोनों हम उम्र लगते थे।

सावित्री की मां और नरेश की मां की
आपस में अच्छी मैत्री थी। यह एक तरह से
पड़ोसी होने के नाते हो सकता है और दोनों
महिलाएं शांतिप्रिय स्वभाव की थी। जिस समय नरेश के पिता जी शहर में शिफ्ट किए
उस वक्त नरेश दसवीं कक्षा पास कर गया
था। तो प्लस टू में एडमिशन लेकर पढ़ाई कर रहा है। सावित्री बी ए फर्स्ट ईयर की। स्टूडेंट रही थी। परन्तु दोनों ने पढ़ाई-लिखाई
तथा एज गैप के बारे में कभी नहीं बात की
थी आपस में और बस एक पड़ोसी होने
के नाश्ते मित्र थे।

नरेश के पिता महेंद्र प्रसाद जी जाति से
ब्राह्मण है। वहीं पर सावित्री के पिता धनेश्वर जायसवाल जी जाति के वणिक हैं। सावित्री
उनकी इकलौती संतान हैं। तो सावित्री की
मां चाहती थी उसकी जल्दी ‌शादी कर दिया जाए। परन्तु सावित्री के पिता जी इस निर्णय से सहमत नहीं थे। सावित्री की मां ने कहा
बेटी से कि मैं चाहती हूं बी ए पढते हुए तेरी
शादी कर दें। शादी का नाम सुनते ही वो
एक दम से चौंक गयी थी और मन ही मन
सोचने लगी कि मैं तो नरेश से प्रेम करती हूं।
जब कि दोनों में दोस्ती सिर्फ मैत्री की भावनाओं से भरी हुई थी। सावित्री के मन में
प्रश्न उठा कि नरेश को मुझसे प्रेम है भी या
नहीं । यह मैं उससे डाइरेक्ट पूछ तो नहीं
सकती हूं और यदि पूछ भी लेती हूं तो यह
अटपटा सा लगेगा। अक्सर लड़कियां प्रेम
का इजहार नहीं करती हैं और प्रेम के लिए
पहल भी नहीं करती है। उसके मन-मस्तिष्क में यह बात चल रही थी जिसका निर्णय उसे जल्द लेना चाहिए।
सावित्री ने सोचा कि यह बात क्यों नहीं मां
से पूछवा लूं और मां को बता देती हूं कि
मुझे नरेश से प्रेम हो गया है। ऐसा करने
से मां की प्रतिक्रिया भी समझ में आ जाएगी
और मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर भी। ऐसा करने से मुझे एक फायदा होगा कि प्रेम परवान
चढ सकेंगे या नहीं मुझे पता चल जाएगा।

जैसे ही सावित्री के पिता जी नौकरी पर लिए गये तो थोड़ी देर बाद ही सावित्री
अपनी मां से यह सब पूछ बैठी थी। मां को
तो सब जानकर पहले तो बड़ा डर लगा था
क्योंकि नरेश सावित्री से छोटा है और जाति
का ब्राह्मण भी है। तो नरेश के पिता इस
रिश्ते को बढ़ाने के लिए कभी तैयार नहीं
होंगे। लेकिन अपनी इकलौती बेटी के मनोस्थिति को समझते हुए वो हिम्मत करके
लंच के समय एकान्त में पूछ बैठी थी।

सावित्री के पिता जी बड़ी जोर से भड़क गए
और बोले तो मेरी बेटी ने तुमसे यह सब
जानकारी लेने के लिए कहा है। सावित्री के पिता ने अपनी पत्नी से कहा कि माना कि
सावित्री हम दोनों की
इकलौती संतान है

परन्तु नरेश के बारे में तो हमें कुछ नहीं पता है बस उडते उड़ते खबरों से पता चला कि
नरेश के पिता जी की दो शादी हुई थी।
जिसमें पहली पत्नी रीना से एक लड़का हुआ जो नरेश का सौतेला बड़ा भाई जयेश है जो एम ए फर्स्ट ईयर
में हास्टल में रह कर पढ़ाई कर रहा है।
जयेश की मां ने अंतिम समय में अपने पति
से वादा लिया कि वो जयेश पर सौतेलेपन
की आंच भी नहीं आने देंगे। नियमानुसार तो
जयेश की शादी होगी , उसके बाद वो बनारस में लेक्चरर की नौकरी करेगा।
यह उसका प्लान है। यह सब बातें नरेश की
मां ने अपनी सखि सुनैना से की थी। तो
सावित्री की मां को मालूम हुई थी।

अब सावित्री की मां ने कहा सबसे पहले
देखते है पता करके कि
कि नरेश के क्या विचार हैं। यह बात तो
नरेश के करीबी मित्र से पूछने पर मालूम होगा। मैं तो पहले यह पता करुंगी कि
क्या वो भी सावित्री को पसंद करते हैं। यदि नहीं तो फिर हमें अपनी बेटी को समझाना होगा।

सावित्री के पिता जी ने पत्नी से कहा कि
चलो यह सब समस्या का हल मैं जल्दी
निकालता हूं। इधर तुम सावित्री से जल्दी
शादी की बात को मत बताना। बस हमें
नरेश के विचार मालूम हो जाए तो हम
सावित्री को अपने कांफिडेंस में देकर
दूसरे शहर में जाकर शादी कर देंगे। सावित्री की मां ने कहा , यह ठीक रहेगा।

सावित्री के पिता जी ने नरेश के विचार से मालूम कर लिए , वो अभी शादी नहीं
करना चाहते हैं। उसे शादी के लिए जल्दी
नहीं है। यह बात सुनकर सावित्री की मां
को झटका लगा और बस वो सावित्री के
साथ समय बिताने के लिए अपनी बहन के घर जाने की तैयारी कर ली। अचानक ही
सावित्री मां का प्लान सुनकर चौंक गयी थी।
मगर बोली कुछ नहीं। वो सोची कि आखिर।मौसी के घर ही तो जा रहे हैं। बस कुछ दिनों के बाद वापिस आ जाएंगे। सावित्री खुशी-खुशी मौसी के यहां माता-पिता के साथ चल पड़ी है।

सावित्री के पिता जी ने अपने रिश्तेदारों
से सावित्री के लिए अच्छा सा लड़का देखने के लिए कहा था। लड़का बैंक में मैनेजर के। पोस्ट पर कार्यरत है। माता पिता की दूसरी
संतान हैं। बड़ी बहन शीला की शादी हो गई थी। वो तत्काल इसी शहर में रहती हैं। सावित्री की मां को यह रिश्ता पसंद आया है। सावित्री के पिता जी ने देर करना बिल्कुल उचित नहीं समझा और आज शाम
को ही लड़की देखने का प्रोग्राम बना दिया।
सावित्री की मां ने बहाने से बेटी को तैयार होने के लिए कहा तो उसने पूछा मां आज
ही तो यहां पहुंचे है, अभी तो समय है, कहां
जाने के लिए मुझे कह रही हो। मां ने बेटी।से कहा कि शिव मंदिर जाना है। इस पर वो
कुछ नहीं बोली।

उधर शिव शंकर जी के मंदिर में लड़के वाले सगे संबंधियों के साथ आ गये थे। यह बात सावित्री के लिए सरप्राइज रखा गया है।
सावित्री अपने माता-पिता के साथ शिव
मंदिर आ गई है। सावित्री की मां ने बेटी से कहा कि मेरी बचपन की सखि मंदिर में पूजा करने के लिए आई हुई है तो आओ तुम्हें मैं
उनसे मिलवाती हूं। सावित्री को लड़के वाले ने देख लिया।

शिव शंकर के मंदिर में सभी लोगों ने पूजा की। शंख ध्वनि होती है। जयकारे लगाए। फल फूल और प्रसाद चढाए। धूप दीप और आरती करते हैं ‌। पुरोहित जी सबको प्रसाद देते हैं। अब घर चलने का
समय हो गया था। तो सावित्री अपने माता-पिता के साथ घर आ गई थी।

सावित्री के पिता जी ने लड़के वाले से पूछा कि लड़की पसंद है। तो उनका जवाब हां में था। यह सुनकर सावित्री के मां पिताजी हर्षित हुए। अब दोनों पति-पत्नी
के मन में खिचड़ी पक रही है कि शादी तो
हमें जल्दी करनी चाहिए। लड़की प्रेम पाश
में है। उसके साथ मृदु बानी और भाव से
पेश आना पड़ेगा। सावित्री के माता-पिता
चल पड़े हैं लड़के के यहां पर लेन देन की।बात फाइनल करने के लिए।

सावित्री इधर मौसी के साथ गप्प शप्प करने में व्यस्त हो गई है। सावित्री की तस्वीर और बायोडाटा आदि लेकर गये हैं उसके माता-पिता। लेन देन पर बात करते हुए
शादी जल्दी करने की बात रखी मां पिताजी ने। लड़के वाले मान गये हैं। कोर्ट मैरिज करने का प्रस्ताव सावित्री के पिता जी ने रखा तो लड़के वाले बोले कोई समस्या नहीं है। शादी के बाद कोर्ट मैरिज करना होता है
यहां पर हम लोग शादी से पहले कर लेंगे।
कोई फर्क नहीं पड़ता है यह बात लड़के वाले ने बोल्ड ली कहा।

पहले सगाई की रस्म हुई। उसके बाद
कोर्ट मैरिज तत्पश्चात् एक दिन में तिलक और शादी दोनों हो गये थे। सावित्री को
लग रहा था कि वो सपना देख रही थी।
उसकी नींद खुली तब जब उसने अपने आप को ससुराल में देखा। वो अभी तक
नरेश के ख्याल में खोई हुई थी।

विदाई के वक्त बहुत रोई थी सावित्री
लेकिन उसने अपने जीवन में मां पिताजी
की इच्छा के विरुद्ध कोई काम नहीं किया
था। इसलिए यह शादी चुपचाप मां पिताजी
की इच्छा से कर ली और अपने प्रेम को
अंतर्मन में दफन कर दिया सदा के लिए।
वो अब हंस भी नहीं सकती थी और ना ही
रो भी सकती थी। सावित्री के माता-पिता
ने यह निर्णय उसके बालपन के प्रेम को आहत होने से बचाने के लिए किया था।
सावित्री नरेश से प्रेम तो करती थी परंतु
उसका प्रेम मुखर नहीं था। अब तो यही
कहा जा सकता था कि प्रेम इकतरफा था।
नरेश से प्रेम करने के बावजूद वो कभी भी
प्रेम विवाह के लिए आज तक प्रश्न नहीं की
थी। जितने विधि विधान शादी को लेकर
हुए थे सब में सावित्री का जवाब हां में था।
उसे अब महसूस हुआ था कि प्रेम वही फलता फूलता है जो दोनों तरफ से होता है।
यहां पर सावित्री के माता-पिता ने बड़ी
सूझ बूझ से सावित्री के जीवन को एक
सही आधार दिया , उसका जीवन साथी
जो सदा साथ निभाते हैं। यही सीख देकर
ससुराल भेजा बेटी को। आज वो सुखी है
अपने ससुराल में। बस सावित्री के माता-पिता को जिंदगी का सुकून और चैन
मिल गया था वो यह कि उसने हर रस्म में
अपनी हामी भरी और जवाब उसका हां में था।

-Anita Sinha

Hindi Story by Anita Sinha : 111926750
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