अधूरा सफर
जिंदगी का सफर अधूरा ही रह गया।
सपने जो मन में बुने थे प्रेमिका से शादी
करने के लिए वो पूरे नहीं हो सके और
रह गया सफर अधूरा जिंदगी का। एक ही
कमी थी लडके की प्रेमिका में कि वो एक
पैर से लंगड़ी थी। लेकिन वो चल लेती थी,
बस फर्क इतना है कि जो कोई ध्यान से उसे
चलते देख लेंगे तो कहेंगे लड़की में ऐब है।
सुजान गांव का सरल और सहज इंसान था।
उसने रोशनी से शादी के लिए हां कर दी थी।
मगर मां नहीं चाहती थी कि इनकी बहू को
कोई लंगड़ी कहे। यह बात उनसे बर्दाश्त नहीं होती। यही कारण है कि शादी की बात
आगे बढ़े और फिर समाज के लोगों से प्रश्न और उत्तर की झड़ी लग जाए। उसके बाद
नाते रिश्तेदार तथा अपने समधी घर वाले
सभी तो प्रश्न करेंगे। सुजान के लिए लड़की
की कमी तो नहीं थी। लड़का बैंक में नये जाब पर लगा था। एक छोटी बहन है और
मां पिताजी बस। मतलब कि परिवार के
नाम पर यही चार लोग। सुजान के पिता जी
तो चाहते थे कि शादी हो रही थी तो हो जाती। उनका कहना था कि आखिर उस
लड़की से शादी कोई तो करेंगे। कुंआरी लड़की किसी की नहीं बैठी रहती है।
मगर सुजान की मां ने बात नहीं सुनी।वो
अपने जिद पर अड़ी रही। सुजान की शादी
की बात आगे बढ़ने से पहले ही अधूरी रह गई। कहने का तात्पर्य यह है कि सुजान
की जिंदगी का सफर पूरा नहीं हो सका
बल्कि वो अधूरा ही रह गया था। अपने
अधूरे सपने को लेकर सुजान नहीं चाहता
था कि बात को कोई खींचे। इस वजह से वह सुजान ने अपना ट्रांसफर शहर में
करवा लिया। मां पिताजी सुजान के इस
निर्णय से नाखुश थे। लेकिन सुजान ने
बातों के भंवर जाल से बचने के लिए यह
रास्ता चुना था। इसमें उसे अपनी मानसिक शांति नजर आ रही थी।
कहते हैं कि सफर सबों के पूरे नहीं होते हैं
वो भी जिंदगी के। कुछ रंगीन सपनों के सफ़र होते हैं तो पूरे हो जाते हैं। लेकिन जिसकी जिंदगी की पतवार गार्जियन के
हाथ में हो तो सपने पूरे होने में देर जरुर
लगते हैं लेकिन निश्चय पक्के होते हैं तथा सफर सुहाने बन कर पूरे होते हैं। इसमें
कहीं पर सफर पूरा नहीं भी होता है लेकिन
वो जीवन के अंतिम पड़ाव पर जाकर
जरूर पूरा होता है सफर , अब वो कांटों
का सफर हो या फूलों का सफर।
मगर सफर अधूरा शायद ही होता है।जब
इंसान अपने मन से शादी के खिलाफ
होते हैं तब। अन्यथा नहीं हर कोई के
सपनों का सफर कल्पनाओं में जरुर
पूरा होता है मतलब कि सच्चे प्रेम की
डगर का सफर। वो अधूरा रहकर भी
पूरा ही समझा जाता है जैसे कि यादों
का सफर।
-Anita Sinha