मैं और मेरे अह्सास
अश्क के जाम पीने की आदत हो गई है l
मुहब्बत में ये बीमारी इबादत हो गई है ll
मुस्कराकर सारा गम छिपा रहे देखो तो l
मनचाहे मुसाफ़िर की इनायत हो गई है ll
निगाहों की दहलीज को पार करके एक l
दो बूंद पानी बहा तो कयामत हो गई है ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह