मैं और मेरे अह्सास
संग परिंदों के व्योम में उड़ना चाहते हैं l
गुब्बारों के साथ हवामें झुमना चाहते हैं ll
परवाज़ की उड़ान के साथ मिले पंख l
फिझाओ में दूर तल्ख चढ़ना चाहते हैं ll
एक आरज़ू लेकर इस जहाँ से वहाँ उस l
बादलों की आरज़ू को पढ़ना चाहते हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह