सोचता हूँ....
जब प्रेम में लिप्त दो इंशान
अलगाव के बाद अलग हो जाते है
इत्तिफ़ाक़ से कहीं टकरा जाते होंगे
तो कितना झिझकते होंगे
नजरे मिलाने में, हाल पूंछने में या
हाथ मिलाने में......कुछ कहने मे....
साँसे थम सी जाती होगी या फिर,
जोर जोर से दिल धड़क जाता होगा,
जो तुम बिछड़ गई हो मुझसे
और हम मिले कभी कहीं,किसी मोड पर
तो मुझे गले लगाकर बहा देना सारा अलगाव
और कह देना वह सारी बातें
जो कभी कह न सके.......
मत रखना उस बातो को दिल मे,
जो हमारी अलगाव का कारण बने,
बस तु एक बार आकर,
बस रो देना इशक मे अपने...
बेपरवाह इश्क मेरा
साँसे लापरवाह तेरी
भरत (राज)