कितनी प्यारी होती है न
पैंतीस चालीस की स्त्री।
इनकी भरी भरी काया को देख
जीरो साइज वाली भी रश्क करती।
मौसम कोई भी हो ..
घर में सबसे पहले उठती
बालों को क्लचर से उठाती
फिर भी चेहरे पर
कुछ बाल बिखेरे रहती।
इनके लापरवाह सौंदर्य की
क्या कहिए रंभा और मेनका भी
पानी भरती।
सुबह सुबह ढीली सी कुर्ती
या साड़ी का पल्लू
कमर में खोंसे
इधर उधर दौड़ती
पति की हर आवाज़ पर
हांजी हांजी कहती..
कभी बच्चों का टिफिन भरते
सासु मां को चाय पकड़ा आती
देवर ननद बाई के नखरे
चुप चाप सहती
क्या ये किसी साध्वी से
कम लगती।
नहाकर जब ये निकलती
बस बिंदी टिका लगाती
इस चेहरे के सामने
बालीवुड की लिपीपुती
अभिनेत्री पानी भरती।
कितना शोर करतीं हो!!!
कोई काम ठीक से नहीं करती
सुन छुपकर टसुए बहाती
फिर जाकर बर्तनों को पटक
मन हल्का करती।
शाम को पड़ोसिनों संग
हंस हंस कर बतियाती
मुफ्त की टानिक ये पीती।
ब्यूटी पार्लर जाने का
इनको समय कहां
जिम में पसीना नहीं बहाती
भारी भरकम शापिंग भी नहीं ।
बस तीज त्यौहार में अपने सारे शौक ये पूरे करती।
तनाव की कोई दवा ना ये खाती
फिर भी खुश रहती।
माथे पर पसीने की बूंदें
घर गृहस्थी में रमी
कितनी सुन्दर होती हैं
पैंतीस चालीस वाली स्त्री
ये पैसे कमाये या न कमाये
ये रिश्ते कमाती है ,नाते जोड़ती
वात्सल्य लुटाती ,प्रेम बिखेरती
दुख अभाव और
निराशा बुहारती है ....
सच कितनी खूबसूरत होती है
पैंतीस चालीस वाली स्त्री।।
किरन झा मिश्री
-किरन झा मिश्री