मैं और मेरे अह्सास
आँखें चार हुईं दिल की बीमारी लग गई l
ख्वाबों में उम्मीदे ओ ख्वाइशे जग गई ll
सखी बड़े चाव से ख़ुद को सजाया था l
आज मुलाकात के अरमान को ठग गई ll
एक नज़र जीभर के देखने की ख्वाहिश में l
हुश्न की गली में पाँव की चप्पल रग गई ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह