ध्यान धरा का, त्याग आकाश का,
गृहस्थ जीवन भी, फिर तुम्हारा वैराग्य का।
विचार में गीता का भाव हो
कर्म में रामचरितमानस का स्वभाव हो,
जीवन के कर्तव्य पथ पर फिर कभी न भय हो
इस संसार के फिर तुम मृत्युंजय अभय हो।
मन तुम्हारा रस्म का, तन तुम्हारा भस्म का
संसार सारा शिव का, शिव तुम्हारे संसार का।
-Anant Dhish Aman