स्कूल के पल
एक दिन था जब मैं स्कूल जाया करता था ।
भारी-भारी बेग उठाकर जाता था ।
तब मज़दूर से कम न लगता था ।
फिर भी रोज जाना अच्छा लगता था।
टीचर्स की डाट खाना जैसे खुराक था।
उसका प्यार जैसे प्यासे का पानी था ।
होमवर्क से पीछा छूडाना जैसे मिशन था।
एक दिन था जब मैं स्कूल जाया करता था ।
दोस्तों के साथ बिना भेदभाव खाना था।
अगर कोई भूल जाए तो निस्वार्थ खिलाना था।
खेलने के लिए टीचर्स को मुश्किल से मनाना था।
खेल के साथ सारे टेंशन छोड़ता और खुशियों को भरता था ।
एक दिन था जब मैं स्कूल जाया करता था ।
ज़िंदगी तो सिर्फ उन पलों में थी ।
जब हर पल खुशियों से भरा था ।
अब तो सिर्फ साँसे है ।
जो सिर्फ आती जाती है । –एक पुराना स्टूडेंट