Hindi Quote in Poem by Kiran shah

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*माँ*

तेरे आंचल की छांव में
जिंदगी की धूप कम लगती थी
तेरी मंद मंद मुश्कान ..
दिल को छू जाती
तेरा हाथ थामकर
राह आसान होती थी..
डर तो मानो तेरे से डरता था
डर को डराना शिखाया
और
कहानियां बेहिसाब सुनाई
कठीन बातें आसानी से समजाई
ढेरों काम के बीच समय नीकालती
हम बच्चों से ढेरों बातें करती..
ना कभी थकान
ना कभी फरियाद
माँ तुम किस मिट्टी की बनी थी?
क्या तुम कभी अपने लिऐं भी जी थी..
हर बार सब की पसंद याद रखती
पर क्या कभी अपनी पसंद बताई नहीं
और हम अपने में मग्न
कभी तेरी पसंद जाना ही नहीं.
माँ तुमनें सब शिखाया...
बस एक बात शिखाना भुल गई
तेरी तरह खुद को भूलकर कैसे जीऐं
हा! माँ खुद को मिटाकर
बताओं ना माँ..

"काजल"
किरण पियुष शाह
०७/१२/१८

Hindi Poem by Kiran shah : 111907958
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