चाहतें अलग कब थी हमारी।
हसरतें छुपी कब थी हमारी।
तेरा साथ हो तो सांसों की चाहत कब थी!
यूं ही राह में एक दुनिया बसा ली थी हमने।
छोटी-छोटी खुशियों की लकीरे बना ली थी हमने।
खोजती रहती हूं उसे चेहरे को और ।
ढलती शाम में छुपा लेती हूं।
ऐहसासो का गहरा समंदर,
इन आंखों में समां लेती हूं ।