विश्व दिव्यांग दिवस ( 3 दिसंबर ) पर प्रस्तुत है मेरी रचना सभी दिव्यांगो को सादर नमन करते हुए 🙏🙏
दिव्यांग के अंदर आ जाती है शक्ति अपार
जीवन की कठिनाइयों से हो जाते हैं पार
संदेश देते हैं समाज को मन की शक्ति का
मुस्कुराकर जिंदगी को जीत लेते हैं हर बार ।
मन की शक्ति
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पैरों से तूलिका पकड़े
वह उकेर रही थी चित्र
मैं खड़ी अपलक निहारती
उसकी चित्रकारी
उसके चित्रों में राधा कृष्ण का रूप था
और मुझे उसमें दिख रहा नया स्वरुप था
न थी उसके चेहरे पर दुख की शिकन
चित्र बनाने में थी वो मग्न
मन की शक्ति उसमें गजब की थी
पैरों से पकड़े तूलिका वो हंस रही थी
पंगु तो बन गया था मेरा मन
सुंदर लग रहा था उसका तन
वह अपनी एक नई दुनिया रच रही थी
और मेरी कलम निढाल पड़ी थी ।
आभा दवे
मुंबई