एक लिखी थी जो परछाइ तु पढना पसंद करोगे क्या ?
एक कहा था जो लफ़्ज़ तुम फिर से सुनना पसंद करोगे क्या ?
कुछ सुना था इसके बदले मैने भी तुम फिर से कहना पसंद करोगे क्या ?
ये आगाज़ है तेरा जो मेरी खामोशी सुन लेता है वो चंद गुजरी है मेरी क्या तुम आज की सच्चायी मे बदलोगे क्या ?
ये आदत नहीं है मेरी झूटी मुस्कान के साथ जीने की क्या तुम इसे आदत ही रखना पसंद करोगे क्या ?
Piya 🖤