गुरु जी।
जय हो जय हो जय हो गुरु जी।
तुम्हारी सदा ही जय हो गुरु जी।
तेरी सदा ही होवे जय-जयकार हे गुरु जी।
तेरी महिमा बड़ी अपरंपार है हे गूरू जी।
तेरे चरणों में शीश नवाएं हे गुरु जी।
तेरी पूजा करें हे गुरु जी।
तेरी आरती करें हे गुरु जी।
अनाथों को सनाथ बनाते तुम हो हे गुरु जी।
कृपा की बरसात करते तुम हो हे गूरु जी।
गुरु वार दिवस पांच
का दिन था भारी हे गुरु जी।
बन रही थी कुछ अलग मंत्रणा हे गुरु जी।
यंत्रणा की युक्ति निष्फल किए हे गुरु जी।
चाहे दल बल जितने हो तो तुरंत संज्ञान लेते हैं
गुरु जी।
निष्फल हो जाती है योजना और होते सहाय
तुम हे गुरु जी।
बना जो मंत्रणा हे गुरु जी।
ना हो सकी सफल साधना प्रतिशोध की।
तीर निशाना चूक गया कृपा किए जब तुम
मेरे गुरु जी।
देकर आशीर्वाद दिए अभय दान संतान
हे गुरु जी। हुआ सुखी परिवार हे गुरू जी।
हम सब हैं आपकी संतान
हे गुरु जी।
जग मंगल करते तुम हो हे गुरु जी।
दो अंतराल पर बनी एक योजना।
अलग-अलग जब यात्रा हुई बनती वज्रघात
तब मानसिक वेदना।
मगर अवसाद से पीड़ित बुजुर्ग का नहीं
कर सके कोई भी अवहेलना।
रखते चरण शरण में गुरु जी पल पल
नहीं समझ में आए गुरु जी की चाहना।
डांट फटकार और बातों के प्रपंच का
मिलता जो मानसिक वेदना।
का कर सके उसके जिसके लिए रोज
रोज हो रही गुरु प्रार्थना।
काल की सारी कारीगरी हो जाएगी बेकार।
कृपा जब होती है गुरु जी की अपरंपार।
मंत्रणा यंत्रणा वेदना मिथ्या प्रवंचना की उड़
जाती हैं धज्जियां।
पार लगा देते हैं गुरु जी भवसागर से जीवन
कश्तियां।
तुम ही हो माता पिता बंधु सखा हे गुरु जी।
तेरे बिना नहीं और कोई दूजा हे गुरु जी।
रखना वरद हस्त शीश पर हे गुरु जी।
रहें सदा नतमस्तक होकर तेरे चरणों में
हे सतगुरु जी। मनोवांछित फल प्राप्त हो
हे सतगुरु जी।
कोटि-कोटि प्रणाम हे गुरु जी।
यह रचना बिल्कुल काल्पनिक है इसका किसी से भी लेना देना नहीं है यदि मेल मिलाप हो जाता है तो वह मात्र एक संयोग है। इसके लिए लेखक जिम्मेदार नहीं हैं। सादर धन्यवाद। यह रचना को पसंद करने
के लिए लिखी गई है।
-Anita Sinha