१ अंकुर
अंकुर निकसे प्रेम का, प्रियतम का आधार।
नेह-बाग में जब उगे, लगे सुखद संसार ।।
२ मंजूषा
प्रेम-मंजूषा ले चली, सजनी-पिय के द्वार।
बाबुल का घर छोड़कर, बसा नवल संसार ।।
३ भंगिमा
भाव-भंगिमा से दिखें, मानव-मन उद्गार।
नवरस रंगों से सजा, अन्तर्मन शृंगार।।
४ पड़ाव
संयम दृढ़ता धैर्यता, मंजिल तीन पड़ाव ।
मानव उड़े आकाश में, मन से हटें तनाव ।।
५ मुलाकात
मुलाकात के क्षण सुखद, मन में रखें सहेज।
स्मृतियाँ पावन बनें, बिछे सुखों की सेज।।
मनोजकुमार शुक्ल मनोज
🙏🙏🙏🙏🙏🙏