मेघ बरसत आंगना।
सावन में मोरा जीयरा रिघे
नही आए मोरे साजना।
मेघ बरसत......
खिल आए है फूल बाग में अम्वा बौराये।
भरे शहर और गांव,नदी नाले भी भर आए।
चले पवन इथलाए,जिया बहकाए और मन भावना।
मेघ बरसत अंगना......
झिर झिर गिरत फुहार करत मनुहार
और बिजली धड़कावे।
नख से सिख श्रृंगार, कटीली धार, सजी एक नारी
जैसे कंगन झनकावे।
मोर नाचत है छोड़ सब काज
निकाले मंडूका आवाज।
बहुत भीगा है आंगन आज।
नृप चले आओ न समझो बात।
का आए जो बीत गए सावना।
मेघ बरसत आँगना। ......
-Anand Tripathi