कुछ नहीं............................................
सवाल कोई भी हो, जवाब यही रहता हैं,
धीमे से कहो या कहो चिल्ला कर,
कुछ नहीं कहां बदलता है,
चलन में है इन दिनों ये जवाब कुछ ज़्यादा ही,
कहनो को तो है बहुत कुछ,
लेकिन हर दफा कुछ नहीं से ही काम चलाना पड़ता हैं..........................................
कुछ सोच रहे हो क्या, नहीं कुछ नहीं,
कोई बात हुई क्या, नहीं कुछ नहीं,
आजकल कहां हाज़री लगा रहो हो जो दिखते नहीं,
नहीं कहीं नहीं,
कोई दिक्कत है क्या, नहीं कोई दिक्कत नहीं,
एक तो जवाब भी पसंदीदा है और झट से मुंह निकल जाता है,
इसके आगे कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती,
ऐ सबको अपनी मौजूदगी का एहसास कराता हैं..............................................
मुतमइन भी करता है ये अल्फाज़,
खामोश भी करता है ये अल्फाज़,
खुशी और ग़म दोनों को छुपा लेता है ये अल्फाज़,
अपने में मज़बूत और खुद ही में कमज़ोर,
दोनों का फर्ज़ निभाता है ये अल्फाज़,
माना कि इसमें वो बात नहीं जो लम्बी बात में हैं,
लेकिन वक्त का तकाज़ा कहता है,
जो रिहाई ये दिलाता है वो बात तो किसी और बात में भी नहीं है.....................................
स्वरचित
राशी शर्मा