मुझे हराने को जो लोग जुटे है,
उनसे जा के कह दो हाँ हम अकेले बैठे है।
महफ़िल दुश्मन का हीं सही,
चर्चा-ए-आम में मुझे हीं खास बना बैठे है।
अब हम क्या करे!
जो शिकन वो हमारे चेहरे पर देखना चाहते है
उसे वो अपने हीं लिलाट पर लिए बैठे है।
ऐ अनंत मुझे अब भी फ़िक्र है उनका
हमें जमीनदोज करने से पहले खुद को खाक किए बैठे है।
-Anant Dhish Aman