सबकी अपनी राम कहानी......
सबकी अपनी राम कहानी।
आलौकिक गंगा का पानी।।
सबके अलग-अलग दुखड़े हैं,
पक्की-छत तो, उजड़ी-छानी।।
भटका तन जंगल-जंगल है,
सत्ता गुमी मिली पटरानी।
जीवन जिसने खरा जिया है,
उसका नहीं मिला है सानी।
शांति स्वरूपा सीता खोई,
ढूंढ़ेंगे हनुमत सम-ज्ञानी।
रावण का वैभव विशाल था,
पर माथे पर थी पैशानी।
एक-एक कर बिछुड़े अपने,
फिर भी रण हारा अभिमानी।
संघर्षों में छिपी पड़ी है,
पौरुषता की अमर जुबानी।
राम राज्य का सपना सुंदर,
देख रहा हर हिंदुस्तानी।
मनोज कुमार शुक्ल मनोज